कोरोना संक्रमण को लेकर कठघरे में चीन


 


 


कोरोना हफ्ते से ज्यादा का समय खो दिया जाता है। 23 जनवरी को वुहान में लॉकडाउन की घोषणा की जाती है, नतीजा यह कि और तीन सप्ताह हाथ से निकल गए। इस तरह देखा जाए तो जब वुहान में पहली बार वायरस की पहचान हुई तब से लेकर चीनी प्रशासन ने लगभग 7-8 हफ्तों तक न कोई ठोस काम किया न ही बाकी की दुनिया को इसकी कोई आधिकारिक चेतावनी जारी की और इस दौरान यह वायरस दुनियाभर में फैल गया, जिससे अभूतपूर्व स्तर का वैश्विक संकट उत्पन्न हो गया है। यहां यह सवाल करने से कोई खुद नहीं रोक नहीं पाएगा कि अगर यह वायरस अमेरिका या किसी अन्य देश ने चीन पहुंचाया होता तो क्या चीन इतने दिनों तक इस पर चुप्पी साधे रखता? इसका उत्तर सीधा है ८ नहीं। इसके अलावा जब चीन के अपने समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स की खबर कहती है कि वुहान में दिसम्बर माह के शुरू में वायरस का फैलाव वृहद स्तर पर हुआ था तो 23 जनवरी को वुहान का लॉकडाउन करना यानी लगभग 7-8 हफ्ते बाद साहसिक फैसला कैसे हुआ? इसके अतिरिक्त, जैसा कि विश्वभर का मीडिया बताता है कि चीनी प्रशासन ने ली वेनलियांग नामक 34 वर्षीय उस डॉक्टर को तंग किया और चुप करा दिया, जिसने सबसे पहले 30 दिसंबर को अपनी खोज के बाद कोरोना वायरस को लेकर चेतावनी दी थी। वुहान केंद्रीय अस्पताल में काम करते हुए संक्रमित होने, खुद उसकी मौत 7 फरवरी को हो जाती है। कोरोना वायरस की असली कहानी में बताया जाना चाहिए कि इस वायरस का उदगम वुहान की सी-फूड मार्किट से हुआ है और चीनी प्रशासन ने कई हफ्तों तक इसके फैलाव की जानकारी बाकी दुनिया से दबा कर रखी। जब तक कि उसके लिए और आगे छुपाकर रखना असंभव नहीं बन गया। इस तरह चीन ने इस वायरस का निर्यात दुनियाभर में किया है, जो अब इसको नियंत्रित करने में बुरी तरह से हाथ-पांव मार रहा है। इसी बीच अपने देश में कोरोना वायरस पर नियंत्रण पा लेने के बाद चीनी अब अमेरिका पर कोविड- 19 बनाने का इल्जाम लगाने में मशगूल हैं। चीन ने यह समस्या न केवल अपने लिए खड़ी की बल्कि पूरे विश्व के लिए हाहाकारी स्तर का जीवन-मरण की बन आई है, हजारों लोग मारे जा चुके हैं और आर्थिकी तबाह हो गई है। इस चूक के लिए विश्व को चीन की बनाई काल्पनिक कहानी पर यकीन करके उसको कठघरे से बाहर नहीं करना चाहिए। पूरी दुनिया, खासकर भारत को इस संकट से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षा लेनी होगी। उसमें एक यह है कि सामरिक महत्व की वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भरता, खासकर भारतीय दवा उद्योग के लिए दवाओं में इस्तेमाल होने वाले अवयवों की आपूर्ति करना बंद करना होगा क्योंकि इनका 70 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है। सामरिक वस्तुओं में आत्मनिर्भरता बनानी होगी भले ही इसके लिए लागत ज्यादा क्यूं न आए। वैसे भी चीनी नेताओं का रिकार्ड रहा है कि कालांतर में वे सामरिक वस्तुओं का निर्यात उन देशों को रोक देते हैं, जिन्हें सबक सिखाना होता है (जैसे कि रेयर अर्थ मिनरल्स में किया है) उम्मीद की जाए कि कोरोना वायरस का संकट अंततः भारत के नीति-नियंताओं को यह अहसास करवा देगा कि मोबाइल में 5-जी सर्विस का ठेका चीनी कंपनी हुआवे को न दिया जाए। हम सामरिक महत्व के दूरसंचार नेटवर्क को चीन जैसे गैर-भरोसेमंद और विरोधी रहे देश को सौंपना गवारा नहीं कर सकते। महामारी पर इटली की मदद को पहंची चीनी रेडक्रॉस टीम ने वहां पहुंचने पर इटैलियन प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा - 'इटली में न तो क्वारंटाइन ढंग किया जा रहा है, न ही देशव्यापी लॉकडाउन को गंभीरता ले रहे हैं।' 12 मार्च को चीन के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता लिजियन झाओ ने ट्वीट कर कहा था 'कोविड-19 वायरस का उद्गम स्थल अमेरिका है।जाहिर है झाओ का यह आरोप उटपटांग है क्योंकि अगर वाकई अमेरिका ने इस तरह का कुछ काम किया होता तो सबसे पहले अपनी आबादी के बचाव के लिए सुरक्षा उपाय अपनाए होते, वह भी यह बात भलीभांति जानते हुए कि वायरस अंततः उसके अपने इलाके तक भी आन पहुंचेगाऐसे में जो विकट स्थिति वहां आज बन गई है, उसमें खुद को न पाता। इस आरोप पर अमेरिकी राष्ट्रपति इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने 18 मार्च को प्रेस वार्ता करते हुए न केवल कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए इसे नकारा बल्कि कोविड-19 को 'चाइनीज़ वायरस' का नाम दे डाला। इस शब्द को उन्होंने आगे कई बार दोहराया भी है। 18 मार्च को ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो का बेटा एडुअर्डो बोल्सोनारो कोरोना पॉजीटिव पाया गया। उन्होंने ट्वीट कियाजिसका भाव था कि कोरोना महामारी में चीन की भूमिका ठीक वैसी लीपापोती वाली रही है जैसी चैर्नोबिल परमाणु बिजलीघर हादसे में तत्कालीन सोवियत संघ सरकार की रही थी यानी चीजों को ढांपना। उन्होंने आगे कहा - यह गलती सरासर चीन की है और जवाब है जांच करने की आजादीबोल्सनारो के यह शब्द ट्रंप के कहे शब्दों की प्रतिध्वनि जैसे ही हैं, इस पर उत्तेजित होकर ब्रासीलिया स्थित चीनी दूतावास ने गुस्साए प्रतिकर्म में ट्वीट किया कि बोल्सनारो को वस्तुतः 'मैंटल वायरस' चिपक गया है जबकि वे कुछ दिन पहले अमेरिका गए थे। चीनी दूतावास के ट्वीट में कहा गया - 'अफसोस है कि आप ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके अंदर किसी तरह का अंतर्राष्ट्रीय दूरअंदेशी भरा या सामान्य ज्ञान नहीं है, हमारा आपको परामर्श है कि जल्दबाजी में ब्राजील अमेरिका के प्रवक्ता न बनें या सतही बात न करें।पॉजीटिव पाए गए एडुअों अपने पिता के मुख्य विदेश नीति सलाहकार भी हैं और विदेश मामलों पर देश की संसदीय कमेटी के मुखिया भी हैं। उपरोक्त प्रसंग दो चीजों की ओर इंगित करते है - पहला, चीन हरचंद तरीके से नकार रहा है कि कोविड-19 का उदगम वुहान से हुआ है। दूसरा, चीन वायरस को लेकर बनी धारणा को यह कहकर घुमाने में लगा कि चीनी प्रशासन ने बाकी चीन के अंदर कोरोना का फैलाव रोकने में वीरतापूर्ण काम कर दिखाया है और अब वह दूसरे देशों को वायरस की रोकथाम अपनी सीमा तक रखने में मदद की पेशकश कर रहा है। उपरोक्त दोनों ही बिंदु गलत हैं और इसे सिद्ध करने के सबूत हैं। 1 जनवरी को चीनी प्रकाशन ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया 'वुहान के सी-फूड (समुद्री जीवों की मांस मंडी) को 27 दिसम्बर के बाद से बंद कर दिया है, जब 27 लोग अनजाने वायरस के कारण हुए निमोनिया से ग्रस्त पाए गए हैं। इनमें ज्यादातर इस मंडी में काम करने वाले दुकानदार या कर्मी ।' 22 फरवरी को अखबार में छपे एक अन्य लेख में बताया गया - दिसंबर के उत्तरार्द्ध में वुहान सी-फूड मंडी से शुरू हुए वायरस का फैलाव बड़े स्तर पर हो गया है।' अब सवाल है - चीनी प्रशासन ने उस वक्त क्या किया जब वुहान दिसम्बर के पहले दिनों में वायरस ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया था? उत्तर है - कुछ नहीं। इस तरह तीन